ऑटो ट्रांसफॉरर क्या होता है? इसके लाभ, हानि और उपयोग
केवल एक वाइंडिंग वाला ट्रांसफार्मर, ऑटो ट्रांसफॉर्मर कहलाता है। एक ही वाइंडिंग प्राइमरी तथा सेकेंडरी, दोनों का कार्य करती है। यदि पूरी जोइनिंग को प्राइमरी की भर्ती तथा उसके कुछ अंश को सेकेंडरी की भांति प्रयोग किया जाए तो यह स्टेप - डाउन ट्रांसफार्मर बन जाता है। इसी प्रकार यदि वाइंडिंग के कुछ अंश को प्राइमरी की भांति तथा पूरी वाइंडिंग को सेकेंडरी की भांति किया जाए तो यह स्टेप - अप ट्रांसफॉर्मर बन जाता है।
AUTO TRANSFORMER
ऑटो ट्रांसफॉर्मर स्व- प्रेरण (self induction) सिद्धांत पर कार्य करता है। इसके लिए ट्रांसफॉरमेशन रेशों का सूत्र वही रहता है जो कि समान ट्रांसफार्मर के लिए होता है।
ऑटो ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत क्या है?
यह ट्रांसफार्मर दो वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के सिद्धांत पर ही कार्य करता है। जिसका मूल सिद्धांत फैराडे का विधुत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) सिद्धांत है। जिसके अनुसार यदि एक चालक तथा चुंबकीय क्षेत्र बीच सापेक्षिक गति रहे तब चालक के दोनों सिरों के बीच एक EMF उत्पन्न हो जाता है।
जब ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को AC से जोड़ा जाता है तब प्राइमरी में AC विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। इस विधुत धारा के वजह से प्राइमरी वाइंडिंग में एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जो चुंबकीय कोर से होते हुए सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक कर जाता है।
जब यह चुंबकीय क्षेत्र सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक करता है तब इसे चुंबकीय फ्लक्स कहा जाता है। चूँकि या चुंबकीय फ्लक्स प्रत्यावर्ती धारा से उत्पन्न होता है इसलिए इसकी प्रवृति भी प्रत्यावर्ती ही होती है।जब यह प्रत्यावर्ती चुंबकीय फ्लक्स सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक करता है तब उसमे फैराडे के सिद्धांत के अनुसार एक Emf उत्पन्न हो जाता है। सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न EMF का परिमाण वाइंडिंग के फेरो के संख्या पर निर्भर करता है।
ऑटो ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है?
फेज के अनुसार ऑटो ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है:-
- सिंगल फेज ऑटो ट्रांसफार्मर
- थ्री फेज ऑटो ट्रांसफार्मर
कार्य के आधार पर ऑटो ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है :-
- स्टेप अप ट्रांसफार्मर
- स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर
ऑटो ट्रांसफार्मर के गुण
- यह विधुत तथा चुंबकीय दोनों रूप से जुड़ा हुआ रहता है।
- इसमें विधुत शक्ति नियत रहता है।
- इसमें चुंबकीय फ्लक्स नियत रहता है।
- सिंगल वाइंडिंग होने के कारण विधुत उर्जा का ह्रास बहुत कम होता है।
- दो वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के तुलना में ऑटो ट्रांसफार्मर की दक्षता ज्यादा होता है।
- इसमें आयरन तथा कॉपर लोस कम होता है।
ऑटो ट्रांसफॉर्मर का उपयोग-ऑटो ट्रांसफार्मर का उपयोग वोल्टेज स्टेबलाइजर, इंडक्शन मोटर की गति नियंत्रक युक्ति, बूस्टर आदि में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, निम्न वोल्टेज परिवर्तनों पर इसका वोल्टेज नियमन भी सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा उच्च होता है।
ऑटो ट्रांसफॉरर का लाभ-एक वाइंडिंग की बचत के कारण या सामान्य प्रकार के ट्रांसफार्मर की अपेक्षा आकार में छोटा तथा कम लागत मूल्य वाला होता है। इसकी दक्षता उच्च होती है।
ऑटो ट्रांसफॉर्मर का हानि -सेकेंडरी वाइंडिंग पृथक न बनाए जाने के कारण इसके उपयोग पर आधारित उपकरण एवं यंत्र मरम्मत करते समय कारीगर को विद्युत झटका दे सकते हैं।
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