सोमवार, 29 अगस्त 2022

पावर एंड डिसटीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर (Power and Distribution Transformer)

 पावर एंड डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर क्या होता है? इसआर्टिकल के जरिए हम जानते हैं पावर तथा डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर के बारे में ।

पावर तथा डिसटीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर की संरचना लगभग समान होती है ।और पावर ट्रांसफार्मर की kVA क्षमता सामान्यतः2, 000 kVAसे 20,000 kVA तक होती है और इसकी प्राइमरी वाइंडिंग्स स्टार- संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग डेल्टा- संयोजन में संयोजित होती है।
डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की kVA क्षमता सामान्यतः 5 kVA से 2000 kVA तक होती है और इसकी प्राइमरी वाइंडिंग डेल्टा- संयोजन में तथा सेकेंडरी वाइंडिंग स्टार - संयोजन मैं संयोजित होता है। डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी वाइंडिंग को स्टार- संयोजन में संयोजित करने का मुख्य लाभ यह है कि इससे थ्री फेज सप्लाई के साथ-साथ सिंगल फेज सप्लाई भी प्राप्त की जा सकती है।
सामान्यत ः 15,000 kVA से कम क्षमता वाले ट्रांसफॉर्मर एल .टी .ट्रांसफॉर्मर (LT Transformer) कहलाते हैं। इसी प्रकार,15,000 kVA से अधिक क्षमता वाले ट्रांसफार्मर एच.टी.(HT Transformer) ट्रांसफार्मर कहलाते हैं।

ट्रांसफार्मर के भाग (Part ofa Transformer) पावर या डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर मैं निम्नलिखित भाग होते हैं: 
  1. क्रोड,
  2. प्राइमरी वाइंडिंग्स,
  3. सेकेंडरी वाइंडिंग्स,
  4. आयल टैंक,
  5. ट्रांसफार्मर आयल,
  6. कूलिंग पाइप,
  7. आयल इनलेट वाल्व,
  8. आयल आउटलेट ड्रेन कॉक,
  9. आयल गेज,
  10. प्राइमरी टर्मिनल,
  11. सेकेंडरी टर्मिनल्स,
  12. अर्थ पॉइंट,
  13. डाटा प्लेट,
  14. एक्सप्लोजन वेंट,
  15. कंजरवेटर,
  16. ब्रीदर,
  17. सिलिका जैल,
  18. टैपिंग स्विच,
  19. बुकोल्ज रिले तथा,
  20. तापमापी।

Distribution transformer image

पावर/डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर की सुरक्षा युक्तियां (Safety Device of Power Distribution Transformer) ट्रांसफार्मर में वर्णित भागों में से कंजरवेटर, ब्रीडर ,तापमापी, एक्सप्लोजन वेंट , बकोल्ज रिले, आयल गेज, टैपिंग स्विच, आदि उसकी सुरक्षा युक्तियां कहलाती हैं।

कंजरवेटर (Conservator) एक छोटा आयल टैंक है जो मुख्य आयल टैंक ( ट्रांसफार्मर की बाडी) के ऊपर स्थापित होता है इसमें लगभग आधे स्तर तक ट्रांसफार्मर आयल भरा होता है और इसी टैंक में आयल गैस लगाया जाता है ।

कंजरवेटर का कार्य: -
  1. मुख्य टैंक में तेल के स्तर को बनाए रखना।
  2. तेल का तापमान बढ़ने से उसके आयतन में होने वाले फैलाव को स्थान देना।
  3. जब तेल ठंडा होकर सुकुड़ता  है तो उस समय कंजरवेटर, मुख्य टैंक को तेल की आपूर्ति करता और साथ ही नमी को तेल में नहीं पहुंचने देता।
ब्रीदर (Breather) जब ट्रांसफार्मर आयल ठंडा होकर सिकुड़ता है तो कंजरवेटर के रिक्त हुए स्थान की पूर्ति वायुमंडल की वायु से होती है, यह क्रिया सांस लेना कहलाती हैं।

इस प्रक्रिया में वायुमंडल की नमी तेल में प्रवेश कर सकती है और उसके अचानक गुण को घटा सकती है तेल में नमी के प्रवेश को रोकने के लिए ही ब्रीदर प्रयोग किया जाता है।



ब्रीदर मे वायु की नमी सूखने के लिए सिलिका जेल रखी जाती है यह रंग में सफेद होती है। और नमी सोख लेने के बाद आसमानी नीले रंग की हो जाती है। जब लगभग सारी सिलिका जेल कार रंग आसमानी नीला हो जाता है, तो उसे परिवर्तित कर दिया जाता है।
अन्य प्रकार के वेदर में रबड़ डायफ्राम, थर्मोसायफन फिल्टर, गैस कुशन, आदि प्रयोग किए जाते हैं परंतु सिलिका जेल का प्रयोग अधिक प्रचलित है।

तापमापी (temperature gauge):-ट्रांसफार्मर आयल का तापमान नापने के लिए मुख्य टैंक में एक तापमापी लगाया जाता है, ट्रांसफार्मर आयल का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना चाहिए और ट्रांसफार्मर  के विसंयोजित कर उसकी शीतलन प्रणाली आदि में दोष खोजना चाहिए।

एक्सप्लोजन वेंट (Explosion Vent):- 
  • यह सुरक्षा युक्ति कंजरवेटर का मुख्य टैंक से जुड़ने वाले पाइप पर स्थापित की जाती है।
  • यदि किसी दोष के कारण ट्रांसफार्मर आयल का दबाव बहुत अधिक बढ़ जाए तो ऐसी स्थिति में मुख्य टैंक की सुरक्षा के लिए एक्सप्लोजन वेंट लगाया जाता है।
  • इसे प्रेशर रिलीज वाल्व भी करते हैं
  • तेल का दाम निर्धारित मान से अधिक हो जाने पर इसका डायफ्राम टूट जाता है, और अतिरिक्त तेल बाहर निकल जाता है ।ऐसी स्थिति में ट्रांसफार्मर के दोष को दूर कर नया वाल्व लगाया जाता है।
बकोल्ज रिले (Buchholz Relay)
बकोल्ज रिले,  ट्रांसफार्मर की मुख्य सुरक्षा युक्ति है जो ट्रांसफार्मर मे आंतरिक दोष पैदा हो जाने की स्थिति की सूचना एक अलार्म बेल बजा कर देती है और साथ ही ट्रांसफार्मर की स्रोत से वी संयोजित कर देती है।
सामान्यतः इसका उपयोग,अधिक क्षमता वाले ट्रांसफार्मर में यह किया जाता है। 



Bucholz Relay emage

बकोल्ज रिले का कार्य 
  • इस रेले में दोफ्लोट A तथा B होते हैं इनसे जुड़े दो मरकरी स्विच होते हैं।
  • जब तेल में उस मां के कारण गैस अधिक पैदा हो जाती है तो फ्लोट A नीचे गिर जाता है जिससे एक विद्युत घंटी परिचालित हो जाती है, जो ट्रांसफार्मर की इस स्थिति की सूचना देने का कार्य करती है।
  • यदि तेल बहुत अधिक गर्म हो जाए तो वह तीब्रता से कंजरवेटर की ओर जाता है तेल की तीव्र गति के कारण फ्लोट B, दूसरे मरकरी स्विच के द्वारा ट्रांसफार्मर की स्रोत से वीसंयोजित कर देता है।
  •  यह स्विच एक सर्किट ब्रेकर की भांति कार्य करता है।
आयल गेज (Oil Guage):-कंजरवेटर में उपस्थित तेल का स्तर दर्शाने के लिए इसमें एक आयल गेज लगाया जाता है।

टैपिंग स्विच (Tapping Switch):-
  • ट्रांसफार्मर की आउटपुट वोल्टेज को नियत मान पर रखने के लिए टैपिंग  स्विच प्रयोग किया जाता हैं।
  • यह एक हस्त चालित स्विच कंट्रोल होता है जो सेकेंडरी वाइंडिंग की विभिन्न टैपिंग्स  से सयोजित होता है।
  • इस स्विच के द्वारा वोल्टेज को आवश्यकता अनुसार घटाने /बढ़ाने के लिए सेकेंडरी वाइंडिंग्स के टर्न को घटाया/ बढ़ाया जाता है।
  • टैपिंग  स्विच को टैप - चेंजर भी कहते हैं।




शनिवार, 27 अगस्त 2022

इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर Instrument Transformer ransformer

 इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर क्या होता है? इंग्लिश आर्टिकल में जानेंगे के इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर क्या होता है तथा यह कितने प्रकार का होता है? और इसका उपयोग कहां होता है; धार

उच्च मान की वोल्टेज तथा विद्युत धारा मापक यंत्रों में प्रयोग किया जाने वाला ट्रांसफार्मर, इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉरर कहलाता है। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है,

  1. धारा ट्रांसफार्मर (Current Transformer or CT) तथा
  2. पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर।(Potential Transformer prapt)
धारा ट्रांसफार्मर (Current Transformer or CT)
 
यह एक वोल्टेज स्टेप - अप अर्थात धारा अपचायक प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है। इसकी प्राइमरी की वाइंडिंग में केवल एक - दो लपेटे अथवा एक सीधा और मोटा तार होता है जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग, पतले तार की तथा अनेक लपेटे वाली बनाई जाती है। इस प्रकार प्राइमरी परिपथ की 100 से 200 एंपियर विद्युत धारा को केवल 1से 2 एम्पीयर्स विद्युत धारा में प्रवाहित किया जाता है और उसे सेकेंडरी से संयोजित 0-5 एंपियर एमीटर के द्वारा नाम लिया जाता है।

एमीटर का स्केल,0-150A मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है।


करंट ट्रांसफॉर्मर का चित्र

करंट ट्रांसफॉर्मर का रेशियो -करंट ट्रांसफॉर्मर का रेरेशियों 100/5 A, 250/5A, 500/1A 100/5A इस तरह की वैल्यू के साथ ct  रेशियों होता है।

करंट ट्रांसफॉर्मर का उपयोग
  • करंट ट्रांसफार्मर का उपयोग हम किसी सर्किट में फ्रीक्वेंसी और पावर में बिना कोई बदलाव की है वोल्टेज को घटाने या बढ़ाने के लिए करते हैं।
  • यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या मापने वाले उपकरणों के प्रसंस्करण के लिए उपयोगी है, जिन्हें प्राथमिक सर्किट और माध्यमिक सर्किट के बीच अलगाव की आवश्यकता होती है।
  • यह उच्च-वोल्टेज धाराओं को कम करता है और आपको एक मानक एमीटर के साथ एसी ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से बहने वाले करंट की सुरक्षित निगरानी करने की अनुमति देता है।

पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर(potential transformer or PT)
यह एक वोल्टेज अपचायक (Step - down)प्रकार का छोटा ट्रांसफार्मर होता है इसकी प्राइमरी वाइंडिंग पतले तार की तथा अनेक लपेटे वाली बनाई जाती है जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग में मोटे तार केवल एक-दो लपेटे होते हैं। इस प्रकार प्राइमरी परिपथ के 11,000-22,000 बोल्ट को केवल 50 से 100 बोल्ट के बीच स्टेप डाउन किया जाता है और उसे सेकेंडरी से संयोजित 0 से 100 V बोल्ट मीटर के द्वारा नाम लिया जाता है, बोल्ट मीटर का स्केल,0-25000V मापसीमा के लिए अनुपातिक आधार पर अंकित कर दिया जाता है।

पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर के प्रकार
पोटेंशियल ट्रांफॉर्मर का मुख्य दो प्रकार है। 
  1. इंडोर पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर तथा
  2. आउटडोर पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर
इंडोर पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर -इन डोर पोटेंशियल ट्रांसफार्मर किसी भी रूम के अंदर उपयोग होता है। जैसे HT Panel में पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का यूज होता है। HT पैनल में सर्किट ब्रेकर होता है। ब्रेकर के इनकमिंग में CT और PT लगायी जाती है। ये CT , PT इन दूर प्रकार की होती है।
आउटडोर पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर -HT लाइन  में आउटडोर HT Breaker इन्सटाल्ड होता है। इस ब्रेकर के साथ पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है। यहाँ PT की रचना आउटडोर के हिसाब से ही की जाती है।
पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर का रेशियो - पोटेंशियल ट्रांसफार्मर पे भी लिखा होता है। PT में 220KV/110V, 132KV/110V, 33KV/110, 22KV/110V का रेशियो होता है।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

ऑटो ट्रांसफॉर्मर Auto Transformer

 ऑटो ट्रांसफॉरर क्या होता है? इसके लाभ, हानि और उपयोग

केवल एक वाइंडिंग वाला ट्रांसफार्मर, ऑटो ट्रांसफॉर्मर कहलाता है। एक ही वाइंडिंग प्राइमरी तथा सेकेंडरी, दोनों का कार्य करती है। यदि पूरी जोइनिंग को प्राइमरी की भर्ती तथा उसके कुछ अंश को सेकेंडरी की भांति प्रयोग किया जाए तो यह स्टेप - डाउन ट्रांसफार्मर बन जाता है। इसी प्रकार यदि वाइंडिंग के कुछ अंश को प्राइमरी की भांति तथा पूरी वाइंडिंग को सेकेंडरी की भांति किया जाए तो यह स्टेप - अप ट्रांसफॉर्मर बन जाता है।


AUTO TRANSFORMER 

ऑटो ट्रांसफॉर्मर स्व- प्रेरण (self induction) सिद्धांत पर कार्य करता है। इसके लिए ट्रांसफॉरमेशन रेशों का सूत्र वही रहता है जो कि समान ट्रांसफार्मर के लिए होता है।

ऑटो ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत क्या है?

यह ट्रांसफार्मर दो वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के सिद्धांत पर ही कार्य करता है। जिसका मूल सिद्धांत फैराडे का विधुत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) सिद्धांत है। जिसके अनुसार यदि एक चालक तथा चुंबकीय क्षेत्र बीच सापेक्षिक गति रहे तब चालक के दोनों सिरों के बीच एक EMF उत्पन्न हो जाता है। 

जब ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को AC से जोड़ा जाता है तब प्राइमरी में AC विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। इस विधुत धारा के वजह से प्राइमरी वाइंडिंग में एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जो चुंबकीय कोर से होते हुए सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक कर जाता है। 


जब यह चुंबकीय क्षेत्र सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक करता है तब इसे चुंबकीय फ्लक्स कहा जाता है। चूँकि या चुंबकीय फ्लक्स प्रत्यावर्ती धारा  से उत्पन्न होता है इसलिए इसकी  प्रवृति भी प्रत्यावर्ती  ही होती है।जब यह प्रत्यावर्ती  चुंबकीय फ्लक्स सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक करता है तब उसमे फैराडे के सिद्धांत के अनुसार एक Emf उत्पन्न हो जाता है। सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न EMF का परिमाण वाइंडिंग के फेरो के संख्या पर निर्भर करता है।

ऑटो ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है?
फेज के अनुसार ऑटो ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है:-
  • सिंगल फेज ऑटो ट्रांसफार्मर 
  • थ्री फेज ऑटो ट्रांसफार्मर 
कार्य के आधार पर ऑटो ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है :-
  • स्टेप अप ट्रांसफार्मर 
  • स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर 

ऑटो ट्रांसफार्मर के गुण 

  • यह विधुत तथा चुंबकीय दोनों रूप से जुड़ा हुआ रहता है। 
  • इसमें विधुत शक्ति नियत रहता है। 
  • इसमें चुंबकीय फ्लक्स नियत रहता है। 
  • सिंगल वाइंडिंग होने के कारण विधुत उर्जा का ह्रास बहुत कम होता है। 
  • दो वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के तुलना में ऑटो ट्रांसफार्मर की दक्षता ज्यादा होता है। 
  • इसमें आयरन तथा कॉपर लोस कम होता है। 
ऑटो ट्रांसफॉर्मर का उपयोग-ऑटो ट्रांसफार्मर का उपयोग वोल्टेज स्टेबलाइजर, इंडक्शन मोटर की गति नियंत्रक युक्ति, बूस्टर आदि में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, निम्न वोल्टेज परिवर्तनों पर इसका वोल्टेज नियमन भी सामान्य ट्रांसफार्मर की अपेक्षा उच्च होता है।

ऑटो ट्रांसफॉरर का लाभ-एक वाइंडिंग की बचत के कारण या सामान्य प्रकार के ट्रांसफार्मर की अपेक्षा आकार में छोटा तथा कम लागत मूल्य वाला होता है। इसकी दक्षता उच्च होती है।
ऑटो ट्रांसफॉर्मर का हानि -सेकेंडरी वाइंडिंग पृथक न बनाए जाने के कारण इसके उपयोग पर आधारित उपकरण एवं यंत्र मरम्मत करते समय कारीगर को विद्युत झटका दे सकते हैं।

बुधवार, 24 अगस्त 2022

TRANSFORMER (ट्रांसफार्मर)

परिचय Introduction

ट्रांसफार्मर क्या है आइए जानते हैं हिंदी में। फार्मर का वर्किंग सिद्धांत क्या है...
ट्रांसफार्मर एक ऐसी स्थैतिक युक्ति है जो वैद्युत उर्जा को एक परिपथ है से दूसरे परिपथ मैं स्थानांतरित करती है। इसके साथ ही इस युक्ति के द्वारा वोल्टता का अपचयन (step down) एवं वोल्टता का उच्चायन (step up) सुगमता से किया जा सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह युक्ति केवल प्रत्यावर्ती धारा आपूर्ति पर ही कार्य करती है दिष्ट धारा आपूर्ति पर नहीं।

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत working principle of transformer

ट्रांसफार्मर म्यूच्यूअल इंडक्टेंस के सिद्धांत पर कार्य करता है। इंडक्टेंस का अस्तित्व केवल ऐसी परिपथ में होता है अतः ट्रांसफार्मर भी केवल ए .सी. सप्लाई पर कार्य कर सकता है डी. सी. पर नहीं।

ट्रांसफार्मर की संरचना construction of transformer

 ट्रांसफार्मर में दो प्रकार की वाइंडिंग स्थापित की जाती है।


प्राइमरी Primary 

 जिस वाइंडिंग को वैद्युत स्रोत से संयोजित संयोजित किया जाता है वह प्राइमरी वाइंडिंग या प्राइमरी कहलाती है।

सेकेंडरी वाइंडिंग Secendri

जिस वाइंडिंग को लोड से संयोजित किया जाता है वह सेकेंडरी वाइंडिंग या सेकेंडरी कहलाती हैं।
ट्रांसफॉर्मर वाइंडिंग स्टील स्टांपिंग से निर्मित क्रोड पर स्थापित किया जाता है
  • प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की चुंबकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण रखना
  • प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की अधिकाधिक चुंबकीय बल रेखाओं को सेकेंडरी में से गुजारना वाइंडिंग क्रोड पर स्थापित की जाती है और क्रोड को एक स्टील खोल मैं स्थापित कर दिया जाता है पावर ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग एवं क्रोड के अतिरिक्त अन्य युक्तियां में प्रयोग की जाती है।

कार्यप्रणाली  Working Procedure 

जब ट्रांसफार्मर की प्राइमरी को ए . सी. स्रोत से संयोजित कर दिया जाता है तो प्रत्यावर्ती विद्युत धारा के प्रवाह से प्राइमरी के चारों ओर एक प्रत्यावर्ती स्वभाव का चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है सेकेंडरी वाइंडिंग के चालक प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं और फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुरूप उनमें विद्युत वाहक बल पैदा हो जाता है। क्योंकि प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र प्रत्यावर्ती स्वभाव का होता है इसलिए सेकेंडरी के चालक बिना कोई गति किए ही चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं। इस प्रकार प्राइमरी तथा सेकेंडरी में बिना किसी संयोजन अथवा स्पर्श के ही विद्युत ऊर्जा प्राइमरी से सेकेंडरी में स्थानांतरित हो जाती है यह क्रिया ट्रांसफार्मर क्रिया कहलाती है।

लाभ Advantages 

  1. ट्रांसफार्मर में कोई सचल पुर्जा विद्यमान नहीं होता अतः इसे विशेष देखभाल अनुरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
  2. स्थैतिक प्रकार का उपकरण होने के कारण ट्रांसफार्मर की दक्षता 90 परसेंट से 98 परसेंट तक होती है जबकि अन्य वैद्युत मशीनों की दक्षता इससे काफी कम होती है।
  3. यह अति उच्च वोल्टता पर सामान्य रूप से कार्य कर सकता है जबकि अन्य वैद्युत मशीनें अति उच्च वोल्टेज 400 केवी पर संतोषजनक रूप से कार्य नहीं करते
  4. ट्रांसफार्मर द्वारा वोल्टता घटाने का कार्य अत्यंत विद्युत शक्ति का पथ पर सरलता से संपन्न किया जा सकता है जबकि डी.सी पर वोल्टता घटाने के लिए प्रतिरोधक प्रयोग किए जाते हैं जो पर्याप्त मात्रा में विद्युत शक्ति की खपत करते हैं।
  5. ट्रांसफार्मर के उपयोग से विद्युत शक्ति के पारेषण एवं वितरण की कुल लागत देसी प्रणाली की वेद शक्ति के पारेषण एवं वितरण की लागत की अपेक्षा काफी कम है।
  6. विद्युत शक्ति के ट्रांसमिशन में होने वाले वोल्टेज ड्रॉप को ट्रांसफार्मर द्वारा सुगमता से पूरा किया जा सकता है जबकि डीसी प्रणाली में इस कार्य के लिए बूस्टर मोटर जनित्र सेट प्रयोग करने पड़ते हैं जो पर्याप्त खर्चीले होते हैं।
ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण classification of transformer
वैद्युतीक  कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है।
  1. आउटपुट वोल्टेज के आधार पर
  2. क्रोड की संरचना के आधार पर
  3. फेस की संख्या के आधार पर
  4. शीतलन प्रणाली के आधार पर
  5. आउटपुट क्षमता के आधार पर
  6. व्यापारिक आधार पर
  7. स्थापना स्थल के आधार पर
 उपरोक्त सभी का विस्तृत वर्णन निम्न वत है तथा इन्हें मुख्य शीर्षक के रूप में लिया गया है।

आउटपुट वोल्टता के आधार पर on the basis of output voltage
आउटपुट वोल्टेज के आधार पर ट्रांसफार्मर के निम्न दो प्रकार होते हैं।
उच्चायक ट्रांसफार्मर Step -up Transformer 
जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है वह उच्चा एक ट्रांसफार्मर कहलाता है इसका उपयोग विद्युत उत्पादन केंद्रों पर अल्टरनेटर द्वारा पैदा किए गए वोल्टेज को उच्च वोल्टेज पर ट्रांसमिशन करने हेतु किया जाता है। यह प्रायः 3- फेज डेल्टा - डेल्टा प्रकार का होता है।

अपचायक ट्रांसफार्मर Step -down Transformer 
जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर निम्न आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है वह अपचायक ट्रांसफार्मर कहलाता है शहरी क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज का मान प्रायः 1.1 ,2.2,3.3, 6.6 या 11केवी होता है अतः 400v मे परिवर्तित करने के लिए अपचायक ट्रांसफार्मर प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार 22,33,66,110,132, 220 एवम 400kv विद्युत उप केंद्रों पर आवश्यक निम्न वोल्टेज का आउटपुट तैयार करने के लिए भी अपचायक ट्रांसफार्मर प्रयोग किए जाते हैं। यह प्रायः 3 फेज डेल्टा - स्टार प्रकार के होते हैं।

क्रोड की संरचना के आधार पर On the Basis of core Construction 
क्रोड के संरचना के आधार पर निम्न प्रकार के ट्रांसफार्मर होते हैं।
  • क्रोड प्रकार का ट्रांसफार्मर
  • शैल प्रकार का ट्रांसफार्मर तथा
  • बैरी  प्रकार का ट्रांसफार्मर
क्रोड प्रकार का ट्रांसफार्मर Core Type Transformer 

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर मैं एल आकृति की स्टेपिंग के दो सैट प्रयोग करके आयताकार  क्रौड तैयार की जाती है, ईस क्रोड की दोनों भूजाओ पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है। क्रोड मैं केवल एक चुंबकीय मार्ग स्थापित होता है। इस प्रकार के ट्रांसफार्मर उच्च वोल्टेज पर निम्न आउटपुट शक्ति प्रदान करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

शैल प्रकार का ट्रांसफार्मर Shell Type Transformer 

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में E तथा I आकृति की स्टैपीन्ग प्रयोग करके दोहरी आयताकार कोर तैयार की जाती है ईस कोर के मध्य भुजा पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है। क्रोड मैं दो समांतर चुंबकीय मार्ग स्थापित होते हैं इस प्रकार के ट्रांसफार्मर सिंगल फेज सप्लाई में वोल्टेज स्टेप - अप तथा स्टेप - डाउन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

बैरी प्रकार का ट्रांसफार्मर Berry Type Transformer 
इस प्रकार का ट्रांसफार्मर में एक विशेष प्रकार की क्रोड प्रयोग की जाती है। जो बैरी आकार की क्रोड कहलाती है इसमें कई आयताकार फ्रेम इस प्रकार लगाए जाते हैं की सभी फ्रेमों की एक भुजा मुख्य क्रोड के मध्य भाग्य से गुजरे। मुख्य क्रोड पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है।

 आउटपुट क्षमता के आधार पर On the Basis of Output Transformer
आउटपुट क्षमता के आधार पर दो प्रकार के ट्रांसफार्मर होते हैं।
  • ऑटो ट्रांसफॉर्मर
  • इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर
व्यापारिक आधार पर On Commercial Besis
व्यापारी का आधार पर  ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं
  • पावर ट्रांसफार्मर तथा
  • डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर ।
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पावर एंड डिसटीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर (Power and Distribution Transformer)

  पावर एंड डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर क्या होता है? इसआर्टिकल के जरिए हम जानते हैं पावर तथा डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर के बारे में । पावर ...