परिचय Introduction
ट्रांसफार्मर क्या है आइए जानते हैं हिंदी में। फार्मर का वर्किंग सिद्धांत क्या है...
ट्रांसफार्मर एक ऐसी स्थैतिक युक्ति है जो वैद्युत उर्जा को एक परिपथ है से दूसरे परिपथ मैं स्थानांतरित करती है। इसके साथ ही इस युक्ति के द्वारा वोल्टता का अपचयन (step down) एवं वोल्टता का उच्चायन (step up) सुगमता से किया जा सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह युक्ति केवल प्रत्यावर्ती धारा आपूर्ति पर ही कार्य करती है दिष्ट धारा आपूर्ति पर नहीं।
ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत working principle of transformer
ट्रांसफार्मर म्यूच्यूअल इंडक्टेंस के सिद्धांत पर कार्य करता है। इंडक्टेंस का अस्तित्व केवल ऐसी परिपथ में होता है अतः ट्रांसफार्मर भी केवल ए .सी. सप्लाई पर कार्य कर सकता है डी. सी. पर नहीं।
ट्रांसफार्मर की संरचना construction of transformer
ट्रांसफार्मर में दो प्रकार की वाइंडिंग स्थापित की जाती है।
प्राइमरी Primary जिस वाइंडिंग को वैद्युत स्रोत से संयोजित संयोजित किया जाता है वह प्राइमरी वाइंडिंग या प्राइमरी कहलाती है।
सेकेंडरी वाइंडिंग Secendri
जिस वाइंडिंग को लोड से संयोजित किया जाता है वह सेकेंडरी वाइंडिंग या सेकेंडरी कहलाती हैं।
ट्रांसफॉर्मर वाइंडिंग स्टील स्टांपिंग से निर्मित क्रोड पर स्थापित किया जाता है
- प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की चुंबकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण रखना
- प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की अधिकाधिक चुंबकीय बल रेखाओं को सेकेंडरी में से गुजारना वाइंडिंग क्रोड पर स्थापित की जाती है और क्रोड को एक स्टील खोल मैं स्थापित कर दिया जाता है पावर ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग एवं क्रोड के अतिरिक्त अन्य युक्तियां में प्रयोग की जाती है।
कार्यप्रणाली Working Procedure
जब ट्रांसफार्मर की प्राइमरी को ए . सी. स्रोत से संयोजित कर दिया जाता है तो प्रत्यावर्ती विद्युत धारा के प्रवाह से प्राइमरी के चारों ओर एक प्रत्यावर्ती स्वभाव का चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है सेकेंडरी वाइंडिंग के चालक प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं और फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुरूप उनमें विद्युत वाहक बल पैदा हो जाता है। क्योंकि प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र प्रत्यावर्ती स्वभाव का होता है इसलिए सेकेंडरी के चालक बिना कोई गति किए ही चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं। इस प्रकार प्राइमरी तथा सेकेंडरी में बिना किसी संयोजन अथवा स्पर्श के ही विद्युत ऊर्जा प्राइमरी से सेकेंडरी में स्थानांतरित हो जाती है यह क्रिया ट्रांसफार्मर क्रिया कहलाती है।
लाभ Advantages
- ट्रांसफार्मर में कोई सचल पुर्जा विद्यमान नहीं होता अतः इसे विशेष देखभाल अनुरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
- स्थैतिक प्रकार का उपकरण होने के कारण ट्रांसफार्मर की दक्षता 90 परसेंट से 98 परसेंट तक होती है जबकि अन्य वैद्युत मशीनों की दक्षता इससे काफी कम होती है।
- यह अति उच्च वोल्टता पर सामान्य रूप से कार्य कर सकता है जबकि अन्य वैद्युत मशीनें अति उच्च वोल्टेज 400 केवी पर संतोषजनक रूप से कार्य नहीं करते
- ट्रांसफार्मर द्वारा वोल्टता घटाने का कार्य अत्यंत विद्युत शक्ति का पथ पर सरलता से संपन्न किया जा सकता है जबकि डी.सी पर वोल्टता घटाने के लिए प्रतिरोधक प्रयोग किए जाते हैं जो पर्याप्त मात्रा में विद्युत शक्ति की खपत करते हैं।
- ट्रांसफार्मर के उपयोग से विद्युत शक्ति के पारेषण एवं वितरण की कुल लागत देसी प्रणाली की वेद शक्ति के पारेषण एवं वितरण की लागत की अपेक्षा काफी कम है।
- विद्युत शक्ति के ट्रांसमिशन में होने वाले वोल्टेज ड्रॉप को ट्रांसफार्मर द्वारा सुगमता से पूरा किया जा सकता है जबकि डीसी प्रणाली में इस कार्य के लिए बूस्टर मोटर जनित्र सेट प्रयोग करने पड़ते हैं जो पर्याप्त खर्चीले होते हैं।
ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण classification of transformerवैद्युतीक कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है।
- आउटपुट वोल्टेज के आधार पर
- क्रोड की संरचना के आधार पर
- फेस की संख्या के आधार पर
- शीतलन प्रणाली के आधार पर
- आउटपुट क्षमता के आधार पर
- व्यापारिक आधार पर
- स्थापना स्थल के आधार पर
उपरोक्त सभी का विस्तृत वर्णन निम्न वत है तथा इन्हें मुख्य शीर्षक के रूप में लिया गया है।
आउटपुट वोल्टता के आधार पर on the basis of output voltage
आउटपुट वोल्टेज के आधार पर ट्रांसफार्मर के निम्न दो प्रकार होते हैं।
उच्चायक ट्रांसफार्मर Step -up Transformer
जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है वह उच्चा एक ट्रांसफार्मर कहलाता है इसका उपयोग विद्युत उत्पादन केंद्रों पर अल्टरनेटर द्वारा पैदा किए गए वोल्टेज को उच्च वोल्टेज पर ट्रांसमिशन करने हेतु किया जाता है। यह प्रायः 3- फेज डेल्टा - डेल्टा प्रकार का होता है।
अपचायक ट्रांसफार्मर Step -down Transformer
जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर निम्न आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है वह अपचायक ट्रांसफार्मर कहलाता है शहरी क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज का मान प्रायः 1.1 ,2.2,3.3, 6.6 या 11केवी होता है अतः 400v मे परिवर्तित करने के लिए अपचायक ट्रांसफार्मर प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार 22,33,66,110,132, 220 एवम 400kv विद्युत उप केंद्रों पर आवश्यक निम्न वोल्टेज का आउटपुट तैयार करने के लिए भी अपचायक ट्रांसफार्मर प्रयोग किए जाते हैं। यह प्रायः 3 फेज डेल्टा - स्टार प्रकार के होते हैं।
क्रोड की संरचना के आधार पर On the Basis of core Construction
क्रोड के संरचना के आधार पर निम्न प्रकार के ट्रांसफार्मर होते हैं।
- क्रोड प्रकार का ट्रांसफार्मर
- शैल प्रकार का ट्रांसफार्मर तथा
- बैरी प्रकार का ट्रांसफार्मर
क्रोड प्रकार का ट्रांसफार्मर Core Type Transformer इस प्रकार के ट्रांसफार्मर मैं एल आकृति की स्टेपिंग के दो सैट प्रयोग करके आयताकार क्रौड तैयार की जाती है, ईस क्रोड की दोनों भूजाओ पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है। क्रोड मैं केवल एक चुंबकीय मार्ग स्थापित होता है। इस प्रकार के ट्रांसफार्मर उच्च वोल्टेज पर निम्न आउटपुट शक्ति प्रदान करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
शैल प्रकार का ट्रांसफार्मर Shell Type Transformer इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में E तथा I आकृति की स्टैपीन्ग प्रयोग करके दोहरी आयताकार कोर तैयार की जाती है ईस कोर के मध्य भुजा पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है। क्रोड मैं दो समांतर चुंबकीय मार्ग स्थापित होते हैं इस प्रकार के ट्रांसफार्मर सिंगल फेज सप्लाई में वोल्टेज स्टेप - अप तथा स्टेप - डाउन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
बैरी प्रकार का ट्रांसफार्मर Berry Type Transformer
इस प्रकार का ट्रांसफार्मर में एक विशेष प्रकार की क्रोड प्रयोग की जाती है। जो बैरी आकार की क्रोड कहलाती है इसमें कई आयताकार फ्रेम इस प्रकार लगाए जाते हैं की सभी फ्रेमों की एक भुजा मुख्य क्रोड के मध्य भाग्य से गुजरे। मुख्य क्रोड पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है।
आउटपुट क्षमता के आधार पर On the Basis of Output Transformerआउटपुट क्षमता के आधार पर दो प्रकार के ट्रांसफार्मर होते हैं।
- ऑटो ट्रांसफॉर्मर
- इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर
व्यापारिक आधार पर On Commercial Besisव्यापारी का आधार पर ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं
- पावर ट्रांसफार्मर तथा
- डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर ।
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